उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली (chamoli) जिले के रैनी में ग्लेशियर (glacier) फटने की ख़बर आई है। ग्लेशियर फटने से धौली नदी में बाढ़ आई है और चमोली से हरिद्वार तक खतरा बढ़ गया है। स्टेट कंट्रोल रूम के अनुसार, गढ़वाल की नदियों में पानी ज्यादा बढ़ा हुआ है। करंट लगने से कई लोग लापता बताए जा रहे है
चमोली के रिणी गांव में ऋषिगंगा प्रोजेक्ट (Rishi Ganga Project) को भारी बारिश व अचानक पानी आने से क्षति की संभावना है। नदी में अचानक पाने आने से अलकनंदा के निचले क्षेत्रों में भी बाढ़ की संभावना है। तटीय क्षेत्रों में लोगों को अलर्ट किया गया है। नदी किनारे बसे लोगों को क्षेत्र से हटाया जा रहा है।
अगर आप प्रभावित क्षेत्र में फंसे हैं, आपको किसी तरह की मदद की जरूरत है तो कृपया आपदा परिचालन केंद्र के नम्बर 1070 या 9557444486 पर संपर्क करें। कृपया घटना के बारे में पुराने वीडियो से अफवाह न फैलाएं।
भारत मे मल्टी लेवल मार्केटिंग लेवल यानि की MLM कोई नया कॉन्सेप्ट नही है जिसे हम आपको आज अवगत करवा रहे है, क्योकि इसका सीधा मतलब है की किसी भी इंसान को अपने लॉजिक से कोई प्लान जोइन करवाना और अपने और अपने साथ जुड़े हुए लोगो की इनकम करवाना. मतलब बिल्कुल साफ है इन सब प्लानो मे एक लीडर होता है जो अपने नीचे कुछ लोगो को जोड़ता है और उनके द्वारा किए गये इनवेस्टमेंट से कुछ इनकम कमाता है, फिर जब और लोग उन लोगो के नीचे जुड़ते है तो उपर की लाइन वाले सभी लोगो को उसका प्रॉफिट मिलता है. इस तरह एक चैन सिस्टम स्टार्ट होता है जिसमे हर एक इंसान अपने नीचे कुछ लोग जोड़ कर अपना इनवेस्ट किया हुआ पैसा वापस निकलना होता है |
आप मे से बहुत से लोग शायद इसके बारे मे बात नही करना चाहेंगे क्योकि लोगो के मान मे आम धारणा है कि इस तरह के मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्लान या नेटवर्क मार्केटिंग प्लान मे कुछ ही लोग पैसा कमा पाते है और बाकी लोगो को नुकसान ही होता है. कुछ हद तक ये बात सही भी हो सकती है लेकिन इसके पीछे भी काई कारण हो सकते है जैसे कि:
किसी बहुत ज़्यादा पुराने प्लान मे जोइन करना जिसमे बहुत से लोग पहले ही जुड़ चुके हो – क्योंकि एसे प्लानो मे आपसे पहले बहुत लोग जुड़ चुके होते है और नये लोगो को जोड़ना बहुत मुश्किल होता है.
आपकी टीम मे निस्क्रिय मेंबर होना – अगर अपने अपनी टीम एसे लोगो से बनाई है जो केवल पैसे देकर जुड़ तो सकते है लेकिन आगे नये मेंबर नही जोड़ पाते है तो आपकी इनकम आना रुक जाएगी|
प्लान के बारे मे सही जानकारी नही होना – अक्सर लोग शुरू तो कर देते है लेकिन उन्हे इन प्लानो की पूरी जानकारी नही होती है इसी के चलते, पूरा लाभ नही मिल पाता है.
तो एसे ही कई और कारण भी है जिसकी वजह से लोग इन MLM प्लानो के मे पैसा कमा नही पाते है और अपनी मेहनत से कमाया हुआ धन गवा देते है.
लेकिन हम इसके भविष्य के बारे मे बात करेंगे. क्या भारत मे MLM प्लान का कोई भविष्य है या फिर एक समय के बाद ये सारी कंपनिया बंद हो जाएँगी. क्योकि अक्सर देखा जाता है की इस तरह की कंपनिया कुछ लोगो को प्रॉफिट करवा कर मार्केट से गायब हो जाती है, और रह जाते है कुछ छोटे और मासूम निवेशक जो एसे लोगो के बहकावे मे आकर अपने सुनहरे भविष्य के सपने देख लेते है और अपना कीमती समय और पैसा सब गवाकर ठगा सा महसूस करते है. बीते कुछ साल पहले इन कंपनियो का स्वर्णिम काल था जब इस तरह की कंपनिया कुकुरमुत्ते की तरह उग आई थी. इन कंपनिया मे लोगो ने बहुत से पैसे इनवेस्ट किए और बाद मे सिर्फ़ पछताने के अलावा कुछ भी नही मिला. साल 2019 मे eBIZ नामक कंपनी ने लगभग 17 लाख लोगो से 5000 Cr. की ठगी की और बाद मे फरार हो गयी थी. पूरी स्टोरी पढ़ने के लिए यहा क्लिक करे. MLM के बारे मे रिसर्च करने वाली फर्म strategy india dot com ने एसे सेंकडो SCAM की लिस्ट अपनी वेबसाइट पर डाल रखी है जिसे देखकर सहज ही इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है की ये किस तरह से लोगो को अपने जाल मे फसांती है और पैसे बना कर फुर्र हो जाती है. पूरी लिस्ट यहा पर देखे. तो सरकार ने इन कम्पनियो से निपटने के लिए क्या किया साल 2015 मे केंद्रीय सरकार ने इस तरह की कंपनियों पर नकेल कसने के लिए एक कमेटी का गठन किया जिसने इन कंपनियों पर कड़ी नज़र रखना शुरू किया और बहुत सी कंपनियों पर कार्यवाही शुरू कर दी है और उसके बाद ये दौर लगभग ख़तम या फिर बहुत कम हो गया है.
कल एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए राजस्थान की गहलोत सरकार ने राजस्थान में मृत्युभोज कुप्रथा को खत्म करने के लिए इस पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगाने का फैसला लिया है| अगर कही भी मृत्यु भोज किया जाता है तो इसकी सुचना उस पंचायत के पंच, सरपंच और पटवारी सरकार को देंगे और अगर ऐसा नहीं किया गया तो उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही का प्रावधान रखा गया है|
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मंडावा कनेक्ट राजस्थान सरकार की इस पहल का समर्थन करता है और बधाई देता है. ये एक ऐसा निर्णय है जिस से बहुत से गरीबों का जीवन नरक होने से बचेगा और वे कर्ज के बोझ तले नहीं दबेंगे. मृत्युभोज पर प्रतिबंध का कानून तो 1960 का है, लेकिन कई जगह इसका पालन नहीं हो रहा था. इसके अलावा पहली बार पंच-सरपंच और पटवारी की जवाबदेही तय की गई है.
इससे शर्मनाक कुछ भी नहीं हो सकता: किसी घर में खुशी का मौका हो, तो समझ आता है कि मिठाई बनाकर, खिलाकर खुशी का इजहार करें, खुशी जाहिर करें. लेकिन किसी व्यक्ति के मरने पर मिठाईयाँ परोसी जायें, खाई जायें. इससे शर्मनाक कुछ भी नहीं हो सकता.
क्या लग पाएगा कुरीती पर अंकुश? रिश्तेदारों को तो छोड़ो, पूरा गांव का गांव व आसपास का पूरा क्षेत्र टूट पड़ता है खाने को! तब यह हैसियत दिखाने का अवसर बन जाता है. लेकिन अब राज्य सरकार के निर्देश पर पुलिस मुख्यालय ने इस कुरीती को रोकने के लिए अपनी कमर कसना शुरू कर दी है. ऐसे में देखने वाली बात तो यह होगी कि पुलिस इस कुरीती को रोकने में कितना कामयाब हो पाती है.
सरकारी आदेश की प्रतिलिपि निचे दी गयी है.
सरकार के इस फैसले पर आपकी क्या राय है ? हमें कमेंट करके बताये .
May the divine lights of Diwali spread into your life and bring peace, prosperity, happiness, good health and grand success. Best wishes on the festival of lights and prosperous Diwali!
जय जय। आज बात करेंगे उन लोगो के बारे में जिनके लिए चुनाव होता है एक उत्सव।
निर्वाचन आयोग ने जैसे ही पंचायत चुनावो की घोषणा की, गांव में कुछ लोगो के पावों में घुंघरू जैसे बांध गये, मन में झुरझुरी जैसे पैदा होने लगी क्योकि ये एक ऐसा अवसर है जिसकी प्रतीक्षा वे पिछले पांच साल से कर रहे थे। अब आप बोलेंगे ऐसा क्यों ? अरे भाई, सीधी सी बात है कि जिन लोगो को चुनाव् लड़ना है वो तो अपनी तैयारी पिछले पांच साल से कर ही रहे थे। हर सामाजिक उत्सव में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाना, हर खेल प्रतियोगिता के दौरान दिखाई देना, गांव के हर मेले में कुछ एक्टिविटी करना जैसे कि पानी कि प्याऊ लगाना, व्यवस्था देखने कि कोशिश करना इत्यादि। सबसे बड़ी बात ये है कि आप ऐसे लोगो को किसी बड़े बुजुर्ग की गमी के दौरान उस घर में लगातार देख पाएंगे। आखिर क्यू? अरे भाई वोट ! इन सब कार्यक्रमो में शामिल होती है भीड़। गांव के लगभग मोजिज लोग इक्कट्ठा होते है वह आपका वोट पक्का करने का, अपनी छवि चमकाने का सबसे बड़ा मौका जो होता है।
बात भटक रही है शायद, सो वापस उन लोगो पर आते है जो जिन्हे चुनाव का हर क्षण उत्सव लगता है। ऐसे लोग बड़ी आसानी से पहचाने जा सकते है। ये लोग आपके आसपास ही होते है। आपके काकोसा, बाबोसा या दादोसा या कुछ मामलो में आपके बड़े भाई साहब भी हो सकते है। जिनके तथाकथित सम्बन्ध गांव के सरपंच, प्रधान, पटवारी या स्थानीय नेता जी से होते है और वे इस बात को हर मोके पर भुनाने की कोशिश करते है। अब जैसे ही इन लोगो को पता लगता है की चुनाव की तारीख पड़ चुकी है वैसे ही ये लोग एकदम से सक्रिय हो जाते है। सबसे पहले तो इस बात का पता लगाया जाता है की वर्तमान मे किस नेता की पहुँच कितनी है फिर जब इस बात का पता लगता है तो बड़ी ही बारीकी से अपनी गोटियां सेट की जाती है । फिर ये लोग गाँव भर मे इस बात का प्रचार करने मे जुटते है की फलां सरपंच उम्मीदवार मेरे अपने निजी जानकार है और मेरा उनके साथ दिन रात का उठना बैठना है।
अगला दांव उम्मीदवार को रिझाने का होता है, कि भाई साहब, उस मोहल्ले मे कुल 150 वोट है जिसमे से 125 वोट अपने संपर्क मे है और जहाँ हम बोलेंगे वही वोट जायेगा। बस थोड़ा सा खर्चा पानी करना पड़ेगा। और इस तरह से आपके वोट की कीमत तय कर दी जाती है । मजे की बात ये है कि आपको इस सौदेबाजी का भान भी नही होता है । फिर बारी आती है आपको पटाने की, बहुत प्यार से और सावधानी से उम्मीदवार और आपके बीच मे कोई कनेक्शन ढूंडा जाता है और एक शाम जब आप अपने काम के फुर्सत पाकर आराम से बैठे होते है तो घर के बाहर आवाज दी जाती है… अरे भाया घर पर है क्या?… हाँ बोलते है घर मे एंट्री की जाती है और फिर शुरू होती है इधर उधर की बात, लगभग 15 मिनट बाद मुद्दे को बीच मे फेंका जाता है, वो भी उस समय जब आप बाकि बातों मे लगभग सहमति जता चुके होते हो ।…… तो इस बार बोट किन् देवोगा…. आप बोलते है, अभी कोई आया ही नही है बात करने तो किसको दे,…. बस वो ही मौका होता है जब आप इनके चंगुल में फंस चुके होते हो,……. अरे भाई जी हम आये है ना…… भाई साहब ने भेजा है और आपको बोला है कि वैसे तो उसको बोलने की जरूरत ना है क्युंकि वो तो अपने खास आदमी है पण एक बार मेरा संदेश देकर आवो कि वोट आपां न ही देणा हैं…. ऐ ल्यो पीला चावळ…. ठीक है.. अब म्हे चाला हाँ..
अब आप चाह कर भी कुछ नही कर सकते, आप एक अराजनीतिक व्यक्ति हो जिसे इस झमेले मे नही पड़ना है सो….. आप अपना वोट भले ही किसी भी कंडीडेट को डाले पर आप पर ठप्पा तो लग गया।
सो बात की एक बात
भले ही बात कड़वी लगे पर लगभग सभी सरपंच आज के दिन बिना किसी एजेंडा के चुनाव लड़ते है, क्यों? क्योंकि उनको पता है कि जहाँ के लोग एक बोतल दारू मे या 500 रुपिया मे बिकते हो वहाँ क्या एजेंडा बनाना और बताना। और दूसरी बात मानलो अगर आप ने एजेंडा पूछ भी लिया तो आप किसी दूसरी दुनिया से आये हुए जीव समझे जायेंगे क्युंकि आपको फिर समाज और गांव की समझ नहीं है ऐसा बोलकर साइड कर दिया जायेगा ।
दूसरी बात ये भी है कि लगभग 80% मतदाता तो वो ही करते है जो समाज या भाई बंधु कर रहे है, यानि वोट वहीं डाला जायेगा जहाँ समाज बोलेगा । बाकि बचे 20% में आधे उधर जायेंगे और आधे इधर ।
तो क्या करे… लड़ मरे क्या… समाज से या फिर सरपंच प्रत्याशी से….??
ना… लड़ना क्यु… सीधा हमला तब करे जब मीटिंग हो रही हो समर्थन देने वाली… चंद सीधे सवाल… क्या करोगे अगर जीत गए तो…. इन मुख्य समस्याओं का…. जो जुड़ी है सीधी हर जनमानस से जो बैठा है इस मीटिंग में….. पानी…बिजली….पेंशन…. सड़क… रोज़गार… खेल… शिक्षा… गाँव… गुवाड….
अगर एक भी समस्या का समाधान है… या उसके समाधान का तरीका मालूम है…. तो वो आपका… आपके गाँव का पक्का हितैषी साबित होगा…. और अगर आपको कंधे पर हाथ रख कर कोने में ले जाया जाने लगे तो सतर्क हो जाये… क्युंकि सरपंच साहब कि अगली स्कॉर्पियो आपके पैसे से खरीदी जानी तय हो गयी है ।